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तान् पूर्व॑या नि॒विदा॑ हूमहे व॒यं भगं॑ मि॒त्रमदि॑तिं॒ दक्ष॑म॒स्रिध॑म्। अ॒र्य॒मणं॒ वरु॑णं॒ सोम॑म॒श्विना॒ सर॑स्वती नः सु॒भगा॒ मय॑स्करत् ॥

English Transliteration

tān pūrvayā nividā hūmahe vayam bhagam mitram aditiṁ dakṣam asridham | aryamaṇaṁ varuṇaṁ somam aśvinā sarasvatī naḥ subhagā mayas karat ||

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Pad Path

तान्। पूर्व॑या। नि॒ऽविदा॑। हू॒म॒हे॒। व॒यम्। भग॑म्। मि॒त्रम्। अदि॑तिम्। दक्ष॑म्। अ॒स्रिध॑म्। अ॒र्य॒मण॑म्। वरु॑णम्। सोम॑म्। अ॒श्विना॑। सर॑स्वती। नः॒। सु॒ऽभगा॑। मयः॑। क॒र॒त् ॥

Rigveda » Mandal:1» Sukta:89» Mantra:3 | Ashtak:1» Adhyay:6» Varga:15» Mantra:3 | Mandal:1» Anuvak:14» Mantra:3


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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्य किससे किन्हें पाकर विश्वासयुक्त पदार्थ में विश्वास करें, यह उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

Word-Meaning: - हे मनुष्यो ! जैसे (वयम्) हम लोग (पूर्वया) सनातन (निविदा) वेदवाणी जिससे सब प्रकार से निश्चित किये हुए पदार्थों को प्राप्त होते हैं, उससे कहे हुए वा जिनको कहेंगे (तान्) उन सब विद्वानों को वा (अस्रिधम्) अहिंसक अर्थात् जो हिंसा नहीं करता उस (भगम्) ऐश्वर्ययुक्त (मित्रम्) सबका मित्र (अदितिम्) समस्त विद्याओं का प्रकाश (दक्षम्) और उनकी चतुराइयोंवाला विद्वान् (अर्य्यमणम्) न्यायकारी (वरुणम्) उत्तम गुणयुक्त दुष्टों का बन्धनकर्त्ता (सोमम्) सृष्टि के क्रम से सब पदार्थों का निचोड़ करनेवाला तथा जो शान्तचित्त है, उस (अश्विना) विद्या के पढ़ने-पढ़ाने का काम रखनेवाले वा जल और आग दो-दो पदार्थों को (हूमहे) स्तुति करते हैं और जो संग से उत्पन्न हुई (सरस्वती) विद्या और (सुभगा) श्रेष्ठ शिक्षा से युक्त वाणी (नः) हम लोगों को (मयः) सुख (करन्) करें, वैसे तुम भी करो और वाणी तुम्हारे लिये भी वैसे कहें ॥ ३ ॥
Connotation: - किसी को भी वेदोक्त लक्षणों के विना विद्वान् और मूर्खों के लक्षण जाने नहीं जा सकते और न उनके विना विद्या और श्रेष्ठ शिक्षा से सिद्ध की हुई वाणी सुख करनेवाली हो सकती है। इससे सब मनुष्य वेदार्थ के विशेष ज्ञान से विद्वान् और मूर्खों के लक्षण जानकर विद्वानों का संग कर, मूर्खों का संग छोड़ के समस्त विद्यावाले हों ॥ ३ ॥
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SWAMI DAYANAND SARSWATI

मनुष्याः कया कान् प्राप्य विश्वसिते विश्वसेयुरित्युपदिश्यते ॥

Anvay:

हे मनुष्या ! यथा वयं पूर्वया निविदाऽभिलक्षितानुक्तांस्तान् सर्वान् विदुषोऽस्रिधं भगं मित्रमदितिं दक्षमर्यमणं वरुणं सोमं च हूमहे। यथैतेषां समागमोत्पन्ना सुभगा सरस्वत्यश्विना नोऽस्माकं मयस्करन् सुखकारिणो भवेयुस्तथा यूयं कुरुत ॥ ३ ॥

Word-Meaning: - (तान्) उक्तान् वक्ष्यमाणान् सर्वान् विदुषः (पूर्वया) सनातन्या (निविदा) वेदावाण्याऽभिलक्षितान् निश्चितानर्थान् विदन्ति यया तया वाचा। निविदिति वाङ्नामसु पठितम्। (निघं०१.११) (हूमहे) प्रशंसेम (वयम्) (भगम्) ऐश्वर्य्यवन्तम् (मित्रम्) सर्वसुहृदम् (अदितिम्) सर्वविद्याप्रकाशवन्तम् (दक्षम्) विद्याचातुर्य्यबलयुक्तम् (अस्रिधम्) अहिंसकम् (अर्य्यमणम्) न्यायकारिणम् (वरुणम्) वरगुणयुक्तं दुष्टानां बन्धकारिणम् (सोमम्) सृष्टिक्रमेण सर्वपदार्थाभिषवकर्त्तारं शान्तम् (अश्विना) शिल्पविद्याध्यापकाध्ययनक्रियायुक्तावग्निजलादिद्वन्द्वं वा (सरस्वती) विद्यासुशिक्षया युक्ता वागिव विदुषी स्त्री (नः) अस्माकम् (सुभगा) सुष्ठ्वैश्वर्यपुत्रपौत्रादिसौभाग्यसहिता (मयः) सुखम् (करन्) कुर्य्युः। लेट्प्रयोगोऽयम्। बहुलं छन्दसीति विकरणाभावः ॥ ३ ॥
Connotation: - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। नहि कस्यचिद्वेदोक्तलक्षणैर्विना विदुषामविदुषां च लक्षणानि यथावद्विदितानि भवितुं शक्यानि न च विद्यासुशिक्षासंस्कृता वाक् सुखकारिणी भवितुं शक्या तस्मात्सर्वे मनुष्या वेदार्थविज्ञानेनैतेषां लक्षणानि विदित्वा विद्वत्सङ्गस्वीकरणमविद्वत्सङ्गत्यागं च कृत्वा सर्वविद्यायुक्ता भवन्तु ॥ ३ ॥
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MATA SAVITA JOSHI

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Connotation: - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. वेदोक्त लक्षणाशिवाय कुणालाही विद्वान व मूर्खांचे लक्षण जाणता येऊ शकत नाहीत. त्याशिवाय विद्या व श्रेष्ठ शिक्षणाने सिद्ध झालेली वाणी सुख देणारी असू शकत नाही. त्यासाठी सर्व माणसांनी वेदार्थाच्या विशेष ज्ञानाने विद्वान व मूर्खांचे लक्षण जाणून विद्वानांची संगती व मूर्खांचा संग त्यागून संपूर्ण विद्या प्राप्त करावी. ॥ ३ ॥